ठीक साढ़े सात बजे मैंने उनके फ्लैट की घंटी बजाई. मैडम ने चौंकते हुए दरवाज़ा खोलकर मुस्कुराने का उपक्रम करते हुए स्वागत किया, "आप तो बिलकुल ठीक टाइम पर पहुँच गयीं मिसेज़ फ़ारूक़ी! यही तो फ़ायदा है हाउस वाइफ होने का. कोई ज़िम्मेदारी नहीं जब दिल करे कहीं भी चल दो और एक हम हैं कि अभी कपड़े भी नहीं बदले. सी.एल.मिली नहीं, तीन बजे तो स्कूल से ही आयी हूँ,''वो पहनी हुई अपने पति की शर्ट और लोअर दिखाते हुए बोलीं. इस कटाक्ष को मैंने ख़ूबसूरती से द्रविड़ की तरह डिफेंसिव खेलते हुए उनकी हाँ में हाँ मिलाई क्यूंकि में इन्जोय्मेंट के मूड में थी.
साढ़े आठ बजे तक सभी इन्वाइटीज़ जिन में ज़्यादातर उनकी सहयोगी महिला टीचर्ज़ थीं, आ चुके थे. प्रत्यक्ष परिचितों से सीधे व अप्रत्यक्षों को परिचितों के माध्यम से अभिवादनों का आदान-प्रदान किया गया. अंतत: लेडी ऑफ द हाउस गोल्डन कलर की साड़ी में सज कर आ ही गयीं. साड़ी उन पर फब रही थी. म्युज़िक बज रहा था, बच्चे मज़ा कर रहे थे. यकायक मैडम के सेल की रिंग बजी, मैडम ने फ़ोन रिसीव किया व फोन करने वाले को फटकारना शुरू कर दिया. मुझे लगा कि शायद किसी विद्यार्थी को बुलाया है जो आने में मजबूरी ज़ाहिर कर रहा है. बाद में ज्ञात हुआ कि मैडम के पतिदेव फोन पर थे जो दस से पहले नहीं पहुँच पा रहे थे. काश कोई घर की बीवी ऐसी फटकार लगा पाती.... लेकिन
कव्वों के काएं -काएं करने से कहीं ढोर मरते हैं. ( पतियों के समाज से गुस्ताखी मा'फ). तो केक की उम्र दस बजे तक बढ़ गयी. मैडम अपनी सासुजी को चाय बनाने को बोल कर बतियाने बैठ गयीं.
मैडम की कलीग मिसेज़ माधुरी शुरू हो गयीं." तुम्हारी सास तो बहुत अच्छी है. मुझसे अपने घर में एक घंटा भी नहीं काटा जाता. बड़ी बोर हो जाती हूँ." मैडम ने अपने सुर्ख लिपस्टिक लगे होंटों से बनी खीसें निपोरीं, " क्या कहती हो माधुरी, अरे यहाँ तो पार्टी मैं ऐसे लोग मौजूद हैं जो पूरी ज़िंदगी घर में गुज़ार सकते हैं." मैडम की इस फुलटॉस पर मैं आकुल (uneasy ) हो गयीं .
तभी दूसरी वर्किंग लेडी ने सदासुहागन प्रकरण 'काम वाली बाई' छेड़ा,'' यार तेरी काम वाली तो रेगुलर आती है. छुट्टियाँ तो नहीं मारती? "
--''काश ऐसा होता!, लेकिन मैं उसको छुट्टियों की सज़ा दे देती हूँ!'
--"क्या?'
--"जितने दिन वह नहीं आती, मैं गंदे बर्तन उठा कर सिंक के नीचे डाल देती हूँ और नया बर्तन निकाल लेती हूँ. अब वह दो दिन बाद आये या तीन दिन बाद, धोने उसी को पड़ते हैं. इस वजह से बहुत बर्तन हो गए है, लेकिन पौंछा मुझसे नहीं लगता.वह वो लगा देते हैं'
''ठीक कहती हो सुनीता,''मिसेज़ रंधावा ने ' सज़ा का नया आइडिया सरकाने के लिए' ग्रेटफुल होते हुए कहा,'' यह तो मैंने सोचा ही नहीं था,''
तीसरा पुराण बच्चों की फ़ूड-हेबिट का छिड़ा. मिसेज़ शर्मा ने शिकायती कम फर्मायशी ज्यादा, स्वर में कहा,''मेरे बच्चे तो जंक फ़ूड ही पसंद करते है. और घर में तो जल्दी-जल्दी बार- बार दाल चावल बनने से रोटी तो खाना ही नहीं चाहते, अब तो उनके पापा भी दाल-चावल बनान सीख गए हैं." इन वर्किंग-क्लास लोगों के वर्क की बातें सुन-सुन कर मैं बोर हो चली थीं.
लेडी ऑफ द हाउस मेरे मनोभाव पढ़कर आनंदित हो रही थीं. बोलीं,'' आशी, अगर प्यास लग रही हो तो फ्रिज में से पानी ले लो.'' प्यास तो क्या लगी थी वर्किंग-क्लास लोगों के वर्क से हटने के लिए मैं दूसरे कमरे में जहाँ फ्रिज था, पहुँची. फ्रिज खोलते ही फ्रीज़ हो गयी.. लातादाद कोकरोच अपने साम्राज्य की उद्घोषणा कर रहे थे .. मेन इन ब्लेक याद आ गयी, लगा दुनिया फतह करने के लिए एलियंस ने इस रेफ्रीजेरेटर को अपना ख़ुफ़िया ठिकाना बनाया है . मेरी त्राहि-माम पर सब लपक आये. भिन्न चेहरों पर भारत की अर्थव्यवस्था की भांति मिश्रित प्रतिक्रियाएं थी. मुस्कराहट, सुकून, अफ़सोस, विद्रूपता... मैडमजी के मुखारविंद का रंग उनके होंठों की लिपस्टिक से मैच करने लगा..
तभी मिस्टर मैडम ने प्रवेश लिया और एलियंस के संभावित आक्रमण से पहले ही मैडम का प्रकोप झेलना पड़ा. उसके बाद ही हेप्पी बर्थडे की रस्म पूरी हुई..
बाक़ी आइन्दा:
खुदा हाफ़िज़
Badiya.
ReplyDeleteBhai ekdam wah wah
ReplyDeletevery good experiance, wah kya bat hain
ReplyDeleteyadav & family
GOOD
ReplyDeleteसभी क़द्र्शनासों को साधुवाद
ReplyDeleteMy goodness. The language, expression and the presentation every thing is excellent. Try some serious thoughts.
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ReplyDeleteDear Karnail, the Wanderer!
ReplyDeleteNow it can be said, ''There is a man behind every successful woman.