अपनी बेटी का चौथा बर्थडे मनाने इस बार हम नैनीताल गए. हम मतलब मैं , बिटिया, पतिदेव, देवरजी, देवरानीजी और उन दोनों के मोनू एंड सन्नी.
देवरानीजी का स्टेनडर्ड 'घर की बीवी' से ऊंचा है क्यूंकि वो स्कूल अध्यापिका हैं. चार जून की रात को दिल्ली से चले. रात को अपनी बहिन के यहाँ हसनपुर रुके. सुबह तड़के ही रवाना हो गए....
हालांकि हम लोग मुरादाबाद से ही ता'ल्लुक़ रखते हैं. लेकिन मुरादाबाद बाईपास के बनने से कब मुरादाबाद का क़दीमी शहर निकल गया पता ही नहीं चला. इस सफ़र से पहले कभी छात्रजीवन में जाना हुआ था कुमायूं की तरफ तब तो मुरादाबाद को क्रास करने में ही एक घंटा लग जाता था. धन्यवाद भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण को... शुक्रिया देवरजी की नई ज़ेन एस्टिलो का भी जिसको दोनों भ्राता बारी बारी मज़े से चलाते रहे ...
हल्द्वानी से निकलते ही चढ़ाई शुरू हो जाती है. चढ़ने वाले वाहन सवारों के मुंह पर उत्साह था व उतरने वाले मायूस लग रहे थे शायद सोच रहे थे कि फिर से जिस्म झुलसाने वाली गर्मी शिद्दत से इन्तिज़ार कर रही है...
हम बड़े, छोटों को, जिनका होश में यह पहला पर्वत-दर्शन था, समझाने लगे कि यह देखो पहाड़ शुरू हो गए. दिल्ली के बच्चे जो कि , सिर्फ टीवी में ही प्राकृतिक दुनिया का दर्शन करते हैं, ने उनके पहाड़ होने से ही इनकार कर दिया, रीज़न बिहाइंड दिस .... बिटिया अपने छोटे से मस्तिष्क में पोगो चेनल के 'छोटा भीम' कार्यक्रम से संचयित व समाहित ज्ञान के आधार पर बोली " पहाड़ी सफ़ेद होती है यह तो बिराउन है." मोनू भाई आदतन खामोश रहते है.. मुस्कुरा दिए.. लेकिन एक्सपर्ट कमेन्ट सन्नी भाई का आया." अलीना को कुछ नहीं पता. सफ़ेद पहाड़ तो कार्टून में होते हैं. पहाड़ो पर बर्फ पड़ती है झरने होते हैं. जिसमें कृश नहाता है.."
किस्सा मुख़्तसर यह कि रुकते रुकाते करीब पौने बजे हम ज्योलीकोट, नैनीताल से पंद्रह किलोमीटर पहले, होटल सन-राइज़ पहुंचे जहाँ बुकिंग दिल्ली से करवाई हुई थी. नहा-धोकर, नाश्ता कर फिर नैनीताल के चले. मौसम सुहावना था .. लगता था कि लाखों फ्रिज ग़लती से खुले रह गए है..
नैनीताल पहुंचे. उत्तराखंड पुलिस मुस्तैदी से अपना काम कर रही थी. लेकिन वाहनों की बहुलता इतनी थी कि हमें पार्किंग के लिए जगह ढूँढने में ही करीब डेढ़ घंटा लग गया. सरोवर नगरी अपनी अनुपम छटा बिखेर रही थी, बादल चेहरों को छूते महसूस हो रहे थे. नैनी झील में पहाड़ प्रतिबिम्बित हो रहे थे. सैलानियों की भीड़ का यह आलम था कि कन्धों से कंधे छिलते जाते थे. यदि तापमान को दरकिनार कर दें तो लगता नहीं था कि हम दिल्ली के जनपथ या सरोजिनी नगर मार्किट से अलग घूम रहे हों. सर्वप्रथम बच्चों की बोटिंग की जिद के आगे झुका गया. नाव वाला जिसका नाम 'चन्दन' मालूम हुआ ने हमें टिकिट खिड़की से पहले ही लपक लिया-- एक सौ साठ रुपए प्रति नाव रेट था. हमारी फेमिली का 'कुंदन' नाख़ुदा हुआ व देवरजी का खानदान दूसरे नाववाले के सुपुर्द हुआ.
नाव में बैठने से पहले हमें 'जीवन -रक्षक' (लाइफ सेविंग) जैकेट पहनने को दी गयीं जो माप/परिमाण में समाजवाद की झंडाबरदार थीं मतलब मुझको ढीली आयीं और पतिदेव जो कि माशा'अल्लाह तंदुरस्ती से अगले सिरे पर हैं, को फंसी-फंसी आयी. पतिदेव ने अपनी व्यवसाय-सुलभ जिज्ञासा-शमन व ज्ञानवर्धन हेतु 'कुंदन' जो कि 'बिनसर' की तरफ का रहने वाला था, से बातचीत शुरू कर दी. कुंदन टूरिस्ट सीज़न में पिछले छह साल से नाव खे रहा है, बाक़ी दिनों में मजदूरी करता है. एक फेरे के उसको अस्सी रुपए मिलते हैं शेष कुमायूं पर्यटन विकास निगम व बोट-मालिक में तक़सीम होते हैं. सीज़न में पांच फेरे मिल जाते हैं लेकिन इस बार कुम्भ स्नान पड़ने से दो फेरों के लालें हैं..पतिदेव थोड़े जज़्बाती होकर उदास हो गए...लेकिन हम मिश्रित अर्थव्यवस्था में रहते हैं. जहाँ पूंजीवाद का विरोध करना हो, वहां इश्तराकी (सोशलिस्ट) हो जाइए वरना, अमरीका तो रोल माडल है ही हमारी next -gen का.. कुंदन धीरे-धीरे अपनी अपनी पुष्ट मांसपेशियों और जज़्बे के दम पर '250' नम्बर नाव खेता जा रहा था.. चहुँओर प्राकृतिक पर्वतीय सौंदर्य अपने अप्रितम रूप से मनोहारी छटा बिखेर रहा था. कुम्भ स्नान पड़ने का अवसाद बातों-बातों में फिर कुंदन के चेहरे पर दरक आया.पतिदेव ने ध्यान भटकाने की नियत से नाव की फ़िज़ियोलोजी व एनाटोमी के बारे में सवालात शुरू किये जिससे मालूम हुआ कि ये नावें 'तून' नामक विशेष लकड़ी से बनती है.जिसमें 'हड्डी' अर्थात स्टरक्चर शीशम की लकड़ी से बनता है. तांबे की पत्री/तार से फिटिंग व व 'साल की राल' से वार्निश की जाती है. फर्श चीड़ की लकड़ी से बनता है.. नाव की कीमत परमिट(जो तीस-चालीस हज़ार के बीच पड़ता है) वगैरह को मिलाकर , दो लाख तक पड़ती है. मैं दिल्ली के तिपहिय्या TSR की कीमत का तुलनात्मक अध्ययन करने लगी..वहां भी परमिट... यह है हमारी Mixed Economy !!
नैनी झील के किनारे माल रोड की विपरीत दिशा में पावर हाउस सा स्टरक्चर था जिसके बारे में कुंदन ने बताया यह कम्प्रेसर हाउस है.जिसके द्वारा झील की मछलियों को आक्सीजन की आपूर्ति की जाती है.. काश हमारी दिल्ली में भी हमारे लिए आक्सीजन-आपूर्ति हेतु ऐसा कोई स्ट्रक्चर लग जाता. उससे आगे 'रुद्राक्ष हनुमान' मंदिर था. हिन्दुस्तान के सभी मज़हबों के प्रतीक नैनी झील के इर्दगिर्द साक्षात देखे जा सकते है.
'नौका-विहार' के बाद फेंसी-ड्रेस में बच्चों का फोटो सेशन हुआ. तभी world is a global village को चरितार्थ करते हुए पतिदेव के सहपाठी नसीम अहमद साहब अपने परिवार के साथ घूमते मिल गए. फ़ारूक़ी साहब का मुखारविंद उत्साह से अभिभूत हो गया. यह जानकर मुझे सुकून मिला कि नसीम साहब की भार्या भी ''घर की बीवी'' ही निकलीं ..
बाकी आइन्दाह..
खुदा हाफ़िज़
kya baat hai.
ReplyDeletemeri munh kee baaten cheen leen hai.
keep it up
ashkara ji bhai Subhan-Allah. intna achha safarnama bahut dino ke baad padha. lekin fir kya hua. isko bhi toh kuch likhne aur post karne ki zahmat uthayen
ReplyDeleteहिन्दी ब्लोग जगत मे आप का हार्दिक स्वागत है ...
ReplyDeleteआप की लेखन शैली बहुत बढिआ है ... खूब लिखिये .. और लिखने के लिये खूब पढिये ...आप का सफर नाम अच्छा लगा ...
भविश्य के लिये हार्दिक शुभ कामनाये !!!
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__ राकेश वर्मा
बहुत-बहुत शुक्रिया हौसला अफज़ाई के लिए..
ReplyDeleteAmazing. Bahut Badiya. Ab aapne rukna nai hai, kyunki followers ko lagataar padhne ki aadat hai.
ReplyDeleteDIDI TO KAH NAHI SAKTA KYONKI LAGTA HAI AAPSE BADA HUN (42yrs)LEKIN BAHEN JI TO KAH SAKTA HUN.REQUEST KARTA HUN BAHEN KUCHH AISA LIKHO KI SABHI BIVIYON OR PATIYON KO AKKAL AAYE.MY BEST WISHES WITH YOU.SHARE MORE EXPERIENCE OF YOUR LIFE.
ReplyDeletebahut badiya waiting for more stories.
ReplyDeleteहिन्दी ब्लोग जगत मे आप का स्वागत है ...
ReplyDeleteवाह !!! हिंदी ब्लॉग जगत में सुस्स्वागातम. बहुत दिनों बाद हिंदी ब्लॉग में कुछ नया और ओरिगिनल पढने को मिल रहा है जोकि असल जिन्दगी के वाकये से प्रेरित है. न कोई कल्पना और न कोई बनावट. आशा है जल्द ही इसी तरह के और भी वाकये जल्द ही पढने को मिलेंगे. मेरी सुभकामनाये !
ReplyDeleteMartand Singh